बबासीर का शर्तिया इलाज़
बवासीर में मल द्वार(गूदा) के अन्दर और बाहर की नसे फूल जाती है और उस स्थान की त्वचा कठोर और संकुचित होकर उस पर मटर के बराबर मस्से बन जाते है। ये मस्से मल द्वार के अन्दर या बाहर या दोनों ओर हो सकते है। बवासीर दो प्रकार की होती है। बादी बवासीर- इसमें मस्सा निकलता है, संधिस्थलों तथा जाँघों में दर्द बना रहता है और दुर्गन्धित वायु निकलता है परन्तु रक्त नही गिरता है। खूनी बवासीर- इसमें अन्य लक्षणों के साथ साथ रक्त भी गिरता है। यह रक्त मूत्र त्याग करने और मल त्याग करने के समय, कठोर स्थान पर बैठने या उत्तेजना की स्थिति में भी रिसता रहता है। यह रोग कब्ज, मसालों के अधिक सेवन से हो जाता है। उपचार: कच्चे गूलर के फलों की सब्जी कुछ दिनों तक नियमित खाते रहने से खूनी बवासीर में लाभ होता है। मेथी का काढ़ा बना कर पीने से या मेथी को दूध में औटा कर पीने अर्श रोग में लाभ होता है। बेल के रस का सेवन करने या बेल का गूदा 50 ग्राम लेकले 200 ग्राम चावल की मांड में चीनी या शहद के साथ मिलाकर शर्बत तैयार करके पीते रहने से खूनी बवासीर ठीक हो जाता है। 10 ग्राम देशी घी में पिसे तिलों का चूर्ण सममात्र