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वियाग्रा खाने के कुछ फायदे भी जान ले आप ?

वियाग्रा के नाम से शायद ही कोई पुरुष अपरिचित होगा। मर्दो के काम आने वाली यह दवाई मामूली डोज लेने से हैरान कर देने वाले फायदे देती है। यह बात शोधकर्ताओं ने भी मानी है की वियाग्रा की मामूली डोज लेने वाले लोग आम लोगो से बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं और वे कई प्रकार के खत6रों से बचे रहते हैं। आज की पोस्ट में हम आपको वियाग्रा से होने वाले फायदों के बारे में बताएँगे। वियाग्रा का इस्तेमाल करने वाले लोगो की जब अन्य लोगो से तुलना की गयी तो शोधकर्ताओं ने पाया की वियाग्रा का सेवन लोगो की एक ख़ास परेशानी को दूर कर रहा है। इस परेशानी का नाम है आंत का कैंसर। शोधकर्ताओं ने पाया की वियाग्रा का सेवन पुरुषो में कब्ज एवं आंत सम्बन्धी बीमारियों को दूर रखता है। वियाग्रा का इस्तेमाल करने वाले पुरुषों में आंत का कैंसर होने का खतरा चार गुना तक कम हो जाता है। लम्बे समय तक पेट की परेशानियां आंतो में कैंसर सेल्स पनपने का कारण बन सकती है। वियाग्रा आँतों में कैंसर सेल्स को नहीं बनने देता है। इससे यह पाया गया की वे पुरुष जो वियाग्रा का इस्तेमाल करते हैं उनमे आंत के कैंसर होने की संभावनाएं दूसरे लोगो से काफी ज्याद

मर्दाना शक्ति बढ़ाते है छुहारे ऐसे करें इस्तेमाल।?

आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी मे मनुष्य अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो गया है. वह अपने शरीर की सही तरह से देखभाल नहीं कर रहा है. इस कारण आज  मनुष्य आन्तरिक कमजोरी का शिकार हो गया है. धीरे धीरे वो नामर्दानगी से ग्रस्त हो रहा है. इस कमजोरी का ईलाज केवल एक ही है। दूध के साथ करे छुआरे का सेवन:- नामर्दानगी दूर करने के लिए बाजार मे बहुत से टॉनिक जैसे प्रोटिन शेक व एनर्जी टेबलेट आ गये है मगर इन सबका बहुत साईड इफेक्ट है. ये टॉनिक केमिकल से तैयार होते है जिससे हमारे शरीर को नुक्सान होता है. शरीर की आन्तरिक शक्ति बढाने के लिए दो छुआरे को गरम दूध मे भीगो दे. एक घण्टे बाद दोनो के सेवन कर ले. एक हफ्ते लगातार सेवन करने आपकी पौरूष शक्ति बढ जायेगी क्योकि छुआरे मे विटामिन सी, केल्शियम, फास्फोरस, कार्बोहाड्रेट, विटामिन बी आदि पोषक तत्व भरपूर मात्रा मे होते है जो आन्तरिक शक्ति बढाते है और नामर्दानगी दूर करते है.

तो आप इसलिए भूल जाते है अपने पिछले जन्म की बाते ?

प्रकृति के नियम के अनुसार जिस भी जीव ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया है उसे एक दिन मृत्यु अवश्य आना है यह एक अटल सत्य है इसी कारण से पृथ्वी को मृत्युलोक भी कहा जाता है. हमारे धार्मिक ग्रंथों व पुराणों के अनुसार व्यक्ति केवल अपने शरीर का त्याग करता है उसकी आत्मा अमर होती है जो कभी नहीं मरती. वह एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण कर लेती है. अब आप सोच रहे होंगें की यदि व्यक्ति की आत्मा अमर होती है तो उसे अपने पिछले जन्म के विषय में कुछ भी याद क्यों नहीं रहता वह सब कुछ क्यों भूल जाता है आइये जानते है इसके पीछे क्या कारण है? कपाल क्रिया –  व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार करते समय कपाल क्रिया को विशेष माना जाता है यह क्रिया शव को मुखाग्नि देने के पश्चात जब शव का अधिकतर भाग अग्नि में जल जाता है उस समय एक बांस को बीच से थोड़ा फाड़कर उसमे एक लोटा बाँध दिया जाता है. अब उस बांस में बंधे लोटे में घी को डालकर चिता की परिक्रमा की जाती है जब परिक्रमा पूर्ण हो जाती है तब उस लोटे में रखे घी को शव के सिर पर डालकर उस बांस की सहायता से उस शव के सिर को तोड़ दिया जाता है. इसी को कपाल क्रिया कहते है.

यहां पर मां और बेटी का एक ही पति होता है ।

इस दुनिया में बहुत से अलग-अलग रीति-रिवाज हैं, जिनको लोग बहुत ही शिद्दत से मानते हैं. लोगों ने इन रीति-रिवाजों के दायरे में ही खुद को रखा हुआ है. शादी को लेकर भी लोगों के अलग-अलग रीतियां हैं, लेकिन आज जिस परंपरा के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं. उसके बारे में आपने शायद ही सुना होगा और जब आप इस बारे में जानेंगे तो हैरान हो जाएंगे. जी हां इस परंपरा के अनुसार मां और बेटी का एक ही पति होता है। इस परंपरा को मानने वाली जनजाति बांग्लादेश के मंडी क्षेत्र में रहती है. इस जनजाति में रहने वाली एक 30 साल की महिला ओरोला के पिता की जब मृत्यु हो गई तो वह बहुत छोटी थी. उसके पिता की मौत के बाद उसकी मां ने फिर दूसरी शादी कर ली. उसके सौतेले पिता का नाम नॉटेन था. लेकिन जब ओरोला ने अपनी किशोरावस्था को पार किया तो उसे पता चला कि उसका सौतेला पिता ही उसका पति है. जिसे वो बचपन से अपने पिता के तौर पर देखती और पुकारती आ रही है, अब वही उसका पति बन चुका था. लेकिन इस बारे में ओरोला को कोई जानकारी नहीं थी. उसकी शादी महज 3 साल की उम्र में ही मंडी जनजाति की एक परंपरा के अनुसार कर दी गई थी। आपको बता दें कि

यहां पर कोई महिला नही पहनती है ब्लॉउस खाली साड़ी बंधती है

आपने कभी ऐसा सोचा है कि आप कभी बिना ब्लाउज के साड़ी पहनेंगी। लेकिन भारत में एक ऐसा शहर है, जहां महिलाएं सदियों से बिना ब्लाउज के साड़ी पहन रही हैं। आपको ये पढ़कर हैरानी जरूर हुई होगी, लेकिन यह सच है। छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिलाएं बिना ब्लाउज के सारी जिंदगी साड़ी पहनती हैं। सदियों से चली आ रही इस परंपरा को निभाने के लिए आज भी वहां की महिलाएं ब्लाउज नहीं पहनती हैं। यहां महिलाएं न तो खुद ब्लाउज पहनती हैं और न ही किसी को पहनने देती हैं। अगर कोई महिला ब्लाउज पहनती है, तो सभी महिलाएं उसका विरोध करती हैं और परंपराओं को निभाने के लिए कहती हैं। कुछ लड़कियों ने ब्लाउज के साथ साड़ी पहना तो उन पर परंपराओं को तोड़ने का आरोप तक लगा दिया गया। बिना ब्लाउज के साड़ी पहनने की स्टाइल को गातीमार स्टाइल कहते हैं। यहां की महिलाएं इस परंपरा को एक हजार साल से निभाती चली आ रही हैं। यहां की महिलाओं का ऐसा मानना है कि बिना ब्लाउज के साड़ी पहनने पर काम करने में सुविधा होती है। महिलाओं की ये परंपरा आज के टाइम में फैशन बनता जा रहा है। कई मॉडल्स इस स्टाइल को अपना चुकी हैं।