इंदिरा गांधी जी के छुपे हुए राज । जानो आप भी

जवाहरलाल नेहरु की इकलौती बेटी थी इंदिरा गाँधी, बड़े लाड़ प्यार से पली-बढ़ी थी प्रियदर्शिनी अपने पिता के राजनीतिक कार्यभार को सँभालने में पिता की मदद करना इसे बड़ा ही अच्छा लगता था,ब्रिटेन में रही प्रियदर्शिनी नेहरु बेहद ही मॉडर्न और खुले विचार वाली महिला थी, इनकी मुलाकात फ़िरोज़ खान से इलाहाबाद में हुई थी, इसलिए इनकी पुरानी जान पहचान पहले से ही थी,ब्रिटेन में साथ होने के वजह से, अक्सर इनके बीच मुलाकात होती रहती थी, फ़िरोज़ खान ने इंदिरा को पहले भी प्रोपोज किया था जिसके इंदिरा ने ठुकरा दिया था लेकिन इनके बीच दोस्ती जारी थी,जब इंदिरा की माँ का निधन हुआ तो उसके बाद इंदिरा काफी कमज़ोर हो गई थी जिसके बाद उन्हें फ़िरोज़ ने ही संभाला था, और इसी के चलते दोनों के बीच नजदिकिया बढ़ गई, जब इंदिरा ने अपने पिता को इस बात की खबर दी के वो फ़िरोज़ से शादी करना चाहती है, तब नेहरु जेल में थे और इंदिरा के इस फैसले से काफी नाराज़ थे, 
लेकिन इंदिरा ने इस बात की परवाह किये बिना ही फ़िरोज़ खान से शादी कर ली,
जिसके चलते जवाहरलाल नेहरु ने इंदिरा को त्याग दिया, और महात्मा गाँधी ने उन्हें अपनी बेटी माना जिसके वजह से उनका नाम इंदिरा गाँधी हो गया!
शादी के 2 साल बाद ही इंदिरा ने अपनी पहली संतान को जन्म दिया जिसका नाम उन्होंने ने राजीव रखा, शादी के बाद इंदिरा की राजनीति में रुचि बढ़ाने लगी और अपने पिता के हर काम में सहयोग देने लगी जिसके चलते उनका व्यवाहिक जीवन ख़राब होने लगा!
“पिता की खराब होती तबीयत को देख और उनकी सहायता के लिए इंदिरा आनंदभवन, इलाहाबाद आगई।"अपने पति को छोड़कर अलग होना उनका काफी बड़ा फैसला था,राजनीति के ज्यादा ध्यान देने के वजह से दोनों में दूरियाँ और बढ़ने लगी जिसके चलते बाद में ये पता चला के फ़िरोज़ का किसी और महिला के साथ सम्बन्ध बन गए है, और ये तब हुआ जब इंदिरा अपने दुसरे बेटे को जन्म देने वाली थी, 
राजनीति में बढ़ते स्तर के साथ काफी कामयाबी मिलने लगी और इसी दौरान वो अपने पिता के साथ भूटान के दौरे पर गई जहाँ उन्हें पता चला के उनके पति को दिल का दौरा पड़ा है, 
वहां से वापस आने के बाद दोनों में समझौता हो गया लेकिन एक महीने के बाद हालात फिर बिगड़ने लगे और फिर जब इंदिरा को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया तो ये बात फ़िरोज़ को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई...
लेकिन कुछ दिनों में फ़िरोज़ खान का निधन हो गया जिसके चलते इंदिरा गाँधी और भी टूट गई, लेकिन देश की बागडोर सँभालने के लिए उन्होंने अपने आप कप संभाला,
अपने राजनीतिक सफ़र में इंदिरा ने कई कड़े और अहम् फैसले लिए जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है,

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